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7नवंबर,2011 को बकरीद है ,जो मुसलामानों का एक प्रमुख त्यौहार है.इसदिन असंख्य जानवरों की कुर्बानी दी जाएगी.इस्लाम में सबसे अच्छी क़ुरबानी ऊंट की मानी जाती है ,उसके बाद बैल की फिर बकरे की.अब ऊंट एक तो बहुत ज्यादा कीमत में मिलेंगे और फिर उतने भारत में मिल भी नहीं पाएंगे इसलिए यहाँ वो बैलों की भारी मात्रा में क़ुरबानी देंगे.व्यक्तिगत तौर पर जो सक्षम साधन मुस्लमान हैं ,वो तो बैलों की क़ुरबानी देंगे ही और जो साधन नहीं हैं वो लोग सामूहिक रूप से चंदे इकट्ठे कर बैलों की क़ुरबानी दे कर सबाब हासिल करेंगे.जो लोग क़ुरबानी नहीं दे पाते हैं,उन्हें बाकी लोगों की ओर से, जिन्होंने व्यक्तिगत तौर पर या सामूहिक तौर पर क़ुरबानी दिया है क़ुरबानी के ग़ोश्त दिए जाते हैं.
भारत के कई राज्यों में गो- हत्या बंदी का कानून है,लेकिन ये कानून मुसलमानों के लिए कोई मायने नहीं रखते हैं.हिन्दुओं के लिए गो-वंश अत्यंत ही श्रद्धेय है.श्रद्धा के अतिरिक्त भारत जैसे कृषि प्रधान देश में गाय और गो -वंश का अपना एक अलग ही महत्त्व है.इसीलिए कई राज्यों की सरकारों ने गो हत्या बंदी का कानून बनाया है .दुखद बात है कि इन कानूनों को तक पर रखकर रोज कई गौएँ एवं बछरों का क़त्ल किया जाता है.पुलिस मूक बनकर देखती रहती है.जो काम पुलिस को करना चाहिए वो हिंदुत्व वादी कार्यकर्ताओं को अपनी जान जोखिम में डाल कर करना पड़ता है.बकरीद के पूर्व कुछ दिनों तक इन हिंदुत्व वादी कार्यकर्ताओं को ज्यादा ही सक्रीय रहना पड़ता है.गायों और बैलों को एक जगह से दुसरे जगह ले जाती ट्रकों को रोक कर गायों और बैलों को मुक्त कराने का पुनीत काम इन्हें करना पड़ता है.सरकार अगर कड़ा रुख अख्तियार करे तो एक भी बैल की कुर्बानी न हो पाए.देश के कई देवी मंदिरों में बकरों की बलि दी जाती थी ,पशु प्रेमियों के दबाव में सरकारों ने इन बालियों पर रोक लगा दी.अब हिन्दू ठहरे कानून से डरने वाले,उन्होंने हजारों वर्षों की बलि प्रथा को अधिकांश जगहों पर बंद कर दिया.मुसलमानों को क़ुरबानी देने पर कोई पाबन्दी नहीं है.इस दिशा में न तो सरकार और न ही पशुप्रेमी ही कुछ करते हुए दिखते हैं.यह इस देश का दुर्दैव है कि यहाँ हिन्दुओं के लिए एक कानून और अन्यों के लिए अलग कानून रहते हैं.
कानून की बात छोड़ दें तो क्या मुसलामानों को यह नहीं सोचना चाहिए कि बहुसंख्यक जिस कृत्य को अत्यंत दुखद समझते हैं ,वह नहीं करना चाहिए?हिन्दू सहिष्णु हैं ,इसका अर्थ यह नहीं होता है कि उनको चिढाने के लिए कुछ भी करने की इजाजत है.आखिर हिन्दुओं की सहिष्णुता की भी एक सीमा है .वह सीमा समाप्त होने के कगार पर है.बेहतर है कि अल्पसंख्यक ऐसा कोई भी कृत्य नहीं करें जिससे बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुँचती हो.
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