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सहनशीलता और कट्टरता

निर्भीक वाणी
निर्भीक वाणी
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कुछ लोगों का हम पर आरोप है कि हम असहनशील हैं साथ ही कट्टर हिंदू भी .अब इस वाक्य में ही अंतर्विरोध है क्योंकि एक कट्टर हिंदू कभी भी असहनशील हो ही नहीं सकता .सहनशीलता हिंदुत्व की सुंदरता थी और है .ऐसा भी इन लोगों का विरोध है कि हम मुसलमान विरोधी हैं.क्या हम सच में मुसलमान विरोधी हैं?एक व्यक्ति के रूप में हम किसी मुसलमान का विरोध कैसे कर सकते हैं?हमें विरोध है उनके विचारों से.उनके विचार क्या हैं?उनकी विचारधारा क्या है?उनकी विचारधारा है इस्लाम. उनके विचार हैं असहनशील.

अब असहनशीलता का उत्तर सहनशीलता से कैसे दिया जा सकता है?सहनशीलता का ही उत्तर सहनशीलता के साथ दिया जा सकता है.और हिंदुत्व सिर्फ सहनशीलता पर ही नहीं रुकता है.यह एक कदम और आगे जाकर स्वीकार्यता की बात करता है .सहनशीलता तो क्षुल्लक है.असली बात तो तब है जब आप स्वीकार भी करें .हिंदू यदि असहनशील होते तो भारत में कौन सा धर्म पनप पाता ?वो कहते हैं कि इस्लाम तलवार के जोर पर नहीं फैला है .इस्लाम तो सूफियों ने भारत में फैलाया है ;यदि ऐसी सहनशीलता हिंदुओं में नहीं होती तो कौन सूफी टिक पाते ?फिर इनके सूफी फ़कीर कैसे कैसे हैं?अफज़ल खान के बारे में सबको पता होगा .अफज़ल खान बीजापुर की आदिलशाही में एक सरदार था.वह शिवाजी महाराज को धोखे से मारने के लिए महाराष्ट्र गया था ,लेकिन खुद शिवाजी महाराज के हाथों मारा गया था.शिवाजी महाराज ने मानवता दिखाई और उसकी लाश को इस्लामी विधि से दफ़नाने की व्यवस्था करा दी .अफज़ल खान की कब्र प्रतापगढ़ किले के बगल में ही है.उसी अफज़ल खान को आज सूफी समझा जा रहा है.उसी तरह महमूद गजनवी जिसने 17बार भारत को अपना सहनशील और शांतिपूर्ण रूप दिखाया था ,उसे भी सूफी समझा जाता है .तो दो में से एक ही बात सच हो सकती है -या तो इस्लाम तलवार के जोर पर फैला या फिर शांति और सहनशीलता से .यदि शांति और सहनशीलता के कारण इस्लाम का भारत में अस्तित्व है तो हिंदुत्व की सहनशीलता स्वीकार करनी पड़ेगी क्योंकि बिना हिंदुओं के सहिष्णु हुए इस्लाम का प्रचार ही असंभव था .जब इस्लाम अन्य धर्मों के प्रचार का सहन नहीं करता है तो अन्य धर्मों के अनुयायियों से अपेक्षा करना कि वे आपको प्रचार की इजाजत दें न्यायपूर्ण कैसे हो सकता है ?जब शरीयत इतना ही अच्छा है तो दूसरे धर्मों को सऊदी अरब में प्रचार करने की अनुमति क्यों नहीं है?

मुंबई के एक इस्लामी प्रचारक इसके पीछे एक अनोखा तर्क देते हैं.वो एक प्रतिप्रश्न करते हैं -आपको यदि गणित का शिक्षक रखना हो तो किसे रखेंगे?जो 2और दो का उत्तर 4दे उसे या फिर जो 3या 5 दे उनलोगों को ?फिर आगे कहते हैं कि हम जानते हैं कि इस्लाम ही प्रश्न का सही उत्तर देता है तो हम दूसरे धर्मों को प्रचार की इजाजत कैसे दे सकते हैं?यह है असहनशील मानसिकता .ऐसी मानसिकता का उत्तर सहनशीलता कैसे हो सकती है ?यदि शरीयत यही कहता है तो शरीयत वाली मानसिकता कितनी असहनशील है हम देख सकते हैं .क्या हिंदुत्व इतना कट्टर हो सकता है ?हिंदुओं ने तो जीसस के 12शिष्यों में से एक थॉमस को भी भारत में प्रचार करने से नहीं रोका .केरल में कुछ ईसाई हैं जो यह मानते हैं कि उनके पूर्वजों ने थॉमस से बपतिस्मा लिया था.यदि हिंदू असहिष्णु होते तो थॉमस के अनुयायी भारत में बन पाते क्या?

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