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हिंदुत्व की अन्य धर्मों से तुलना

निर्भीक वाणी
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तीन अब्राहमिक रिलीजंस हैं.यहूदी,ईसाई और इस्लाम.इनमें यहूदी सबसे प्राचीन है ,फिर ईसाईयत आयी और सबसे बाद में इस्लाम आया.आज जो हम इस्लाम में कट्टरता देखते हैं कभी वैसी ही कट्टरता यहूदियों और ईसाईयों में भी थी.समय के साथ यहूदी परिपक्व हुए .अब वो किसी को धर्मान्तरित करने का प्रयत्न नहीं करते हैं और ना ही किसी पर अपने विचार थोपने का ही प्रयत्न करते हैं.ईसाई भी कट्टर हुआ करते थे और बहुत हद तक ज्यादातर ईसाईयों में कट्टरता है भी.धर्मान्तरित करने का उनका उन्माद अभी तक गया नहीं है लेकिन बहुत से ईसाई आज अपने में सुधार ला रहे हैं.वो धर्मान्तरण; वो भी खासकर बलात एवं लालच देकर किये जानेवाले धर्मान्तरण के विरोध में खुलकर बोलने लगे हैं.मैं स्वयं एक ईसाई पास्टर को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ,जो धर्मान्तरण एवं ईसाई आडम्बरों के विरोध में खुलकर बोलते हैं, जिसके चलते बहुत सारे ईसाई बिशपों का विरोध भी उन्हें झेलना पड़ रहा है .लेकिन इस तरह के सही और सच्चे सोच वाले इस्लाम में लगभग नगण्य ही हैं.जब कोई हमीद दलवाई,सलमान रश्दी ,तसलीमा नसरीन या अली सिना जैसे लोग इस्लामी कट्टरपंथ का विरोध करते हैं तो उनके विरोध के स्वर सुनाई नहीं दे पाते हैं क्योंकि ऐसे हिम्मत वाले लोगों की संख्याँ नगण्य ही है.
इन धर्मों की तुलना हिंदुत्व से तो नहीं की जा सकती है ,लेकिन चूँकि इन्हें भी कुछ लोग हिंदुत्व के तरह के धर्म समझते हैं इसलिए तुलना करने से रहा भी नहीं जा सकता है.हिंदुत्व है विश्व का प्राचीनतम धर्म और सबसे ज्यादा परिपक्व.क्या कारण है कि अब्राहमिक रिलीजंस में इतनी कट्टरता है जबकि हिंदुत्व में कोई कट्टरता नहीं है ?ये रिलीजंस जो हैं ,इनका कहना है कि आप या तो इनके धर्म ग्रंथों को पूरा का पूरा मानो या फिर मानो ही मत.ऐसा नहीं है कि आपको जो सही और उचित लगे उसे तो मानें और जो अनुचित लगे उसे नहीं मानें.अब जैसे इस्लाम को माननेवाले को न सिर्फ यह मानना पड़ेगा कि मुहम्मद इस्लाम के पैगम्बर हैं बल्कि वही आखिरी पैगम्बर हैं.जो ऐसा नहीं मानते वो मुसलमान नहीं हो सकते.अहमदिया या कादियानी इस्लाम को और मोहम्मद को तो मानते हैं लेकिन वो यह नहीं मानते हैं कि मोहम्मद आखिरी पैगम्बर थे,इसलिए शिया एवं सुन्नी उन्हें मुसलमान नहीं मानते हैं.इसी तरह बहाई के संस्थापक बहाउल्लाह भी मोहम्मद को अंतिम पैगम्बर नहीं मानकर खुद को ही अंतिम पैगम्बर घोषित कर दिया था,जिसके चलते तत्कालीन ईरान शासन ने उन्हें कैद कर लिया था और उन्हें काफिर घोषित कर दिया था. तो कहने तात्पर्य यह है कि इन धर्मों के साथ ऐसा है कि जो इन धर्मों को मानते हैं उन्हें इन धर्मों एवं इनके धर्म ग्रंथों की हर इक बात को मानना पड़ता है और हम सब जानते हैं कि कुछ बाते हैं जो कट्टरपंथ को बढ़ावा देनेवाली हैं,दूसरे धर्मों के अस्तित्व के प्रति असहनशील हैं.
लेकिन हिंदुत्व है बिलकुल अलग.इसमें हिंदुओं को अधिकार है यह चुनने का कि क्या सही है और क्या गलत.यदि आपको कोई चीज सही और उचित लगती है तो उसका स्वीकार करें और जो सही नहीं लगती हो उसे अस्वीकार करें.हिंदुत्व हमें यह स्वतंत्रता देती है ,जो किसी भी सेमिटिक रिलीजंस में नहीं है .

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